Saturday, August 5, 2017

दौरे-शुकूँ फिर से आज दिल जला गया

दौरे-शुकूँ फिर से आज दिल जला गया
मेरा पता पूछ कर कहीं और चला गया
आंखों का अश्कों का न दिल का कसूर था
ख़त में लिखा था जो वो ही पढ़ा गया
खुद्दार शख़्स है वो अपनी जमात का
लोगों में न जाने उसे क्या क्या कहा गया
तुम देर से आये हो तन्हा हो इसलिए
इस दर से हसरतों का मेला चला गया।
..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विंनीत”

Saturday, April 8, 2017

भीतर तू निहारा कर

अपनी अपनी जिद से पल भर को किनारा कर
मुमकिन है कि बन जाये फिर से बात दोबारा कर । 
मुझको कोई चीज़ समझ न तेरा हूँ तो तेरा ही हूँ
तुझसे दूर नही जाऊंगा कितना भी इशारा कर । 
एक समंदर गहरा दिल है सारे गम पी जायेगा
गम की सारी नदियों को मेरी और पुकारा कर । 
धूप नही जो आंगन में तो सूरज को मत कोसा कर
जुगनू को मनमीत बना दिल में कुछ उजियारा कर । 
सारी फसलें काट चुका जो मिट्टी से मिल आया है
वो जो घर का बूढा है मत उस पर ज्ञान बघारा कर । 
माँ जो कहती है “तू” बेटा, सूरज चंदा तारा है
बातें उसकी झूठी न हो खुद को एक सितारा कर । 
कुछ न हासिल हो,’विनीत’ तू खुद को पा जायेगा
बाहर से पहले, ग़र अपने भीतर तू निहारा कर । 
– देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...