मन मेरा बांसुरी
करता उम्र भर चाकरी ही रहा
ख़त आखिरी था आखिरी ही रहा।
ख़त आखिरी था आखिरी ही रहा।
इल्ज़ाम न दे बेरुखी का हवा को
किवाड़ बंद किये आदमी ही रहा।
किवाड़ बंद किये आदमी ही रहा।
लाख ढाये सितम असर क्या हुआ
जो पिया सांवरा बावरी ही रहा।
जो पिया सांवरा बावरी ही रहा।
हुनरमंद था समा बदल सकता था
मगर करता ग़ैर की बराबरी ही रहा।
मगर करता ग़ैर की बराबरी ही रहा।
नूर ए चश्म मिट गए नूर की चाह में
इश्क़ था आफ़रीं आफ़रीं ही रहा।
इश्क़ था आफ़रीं आफ़रीं ही रहा।
गीत तूने रचा साज तेरा बजा
मन मेरा बांसुरी बांसुरी ही रहा।
मन मेरा बांसुरी बांसुरी ही रहा।
…………देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”