Monday, February 4, 2019

तुम साथ थे तो सम्हल गया

मेरा वहां होना   उसे खल गया
वो बिना आग के ही जल गया

मैं तो वैसा ही रहा     जैसा था
ये तो वक़्त है   जो बदल गया

ठोकरें बहुत थी    अँधेरा भी था
तुम साथ थे इसलिए सम्हल गया

जलवाफरोश है वो शख़्स आज भी
देखा उसे और दिल मचल गया

वादों के आसमान में तारे हजार हैं
जो निभा सके वो सूरज ढल गया

शहर में चर्चा है एक खास चोट का
आइना तोड़कर पत्थर पिघल गया

महफूज है जहन में तू विनीत के
देख तेरी याद में आंसू निकल गया

देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...