Friday, May 20, 2016

अब ऐसे दस्तूर हुए हैं

अब ऐसे दस्तूर हुए हैं


हम तुम यूँ मजबूर हुए हैं
देखो कितने दूर हुए हैं।
आँखों तक आने से पहले
ख़्वाब चकनाचूर हुए है।
ख्वाहिशों ने गुनाह बक्शे
वरना सब बेक़सूर हुए हैं।
जल्दी जाने की ज़िद है
या वो कुछ मग़रूर हुए हैं।
एक दम से ना-उम्मीद न हो
कुछ मसले हल जरूर हुए हैं।
देखें क्या होता है आगे
वादें तो भरपूर हुए है।
जीने की खातिर मरना है
‘विनीत’ अब ऐसे दस्तूर हुए हैं।

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...