Tuesday, January 15, 2019

सितम गुलों का न झेला जाएगा

अभी तो ये खेल खेला जाएगा
तुम्हारे पीछे सारा मेला जाएगा

खुश है वो शख्स महफिले यार में
देखना शहर से अकेला जाएगा

मंजिल की ओर बढ़  चौकन्ना रह
दर कदम पीछे से ढकेला जाएगा

चुनता है फूल तू कांटे उखाड़कर
सितम गुलो का न झेला जाएगा

खुशबू रहेगी गर सीरत में जोर है
रंग फ़कत कोई भी उड़ेला जाएगा

           -देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

कुछ भी तो पहले जैसा नही रहा

कुछ भी तो पहले जैसा नही रहा
बदल गया तू अब वैसा नही रहा

जरूरत थी सामने बाजार भी था
मजबूर था जेब मे पैसा नही रहा

वो चला गया तो लोगों ने ये कहा
मिले तो बहुत मगर ऐसा नही रहा

विनीत याद रहा बस तेरा सुरूर
और भूल गया क्या कैसा नही रहा

          -देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...