Friday, June 29, 2018

यकीं तुमने मोहब्बत पर जो दिल से किया होता

कहीं कुछ भी नही है जो तुम्हारी जद के बाहर है
यकीं तुमने मोहब्बत पर जो दिल से किया होता

नजर जाती जहां तक बस दरख्तों की कतारें थी
मुझे उस दौर में मौला कैद कर रख लिया होता

जमी प्यासी गगन जलता ज़ोर कोई नही चलता
बहुत मगरूर है इंसा फिक्र कल की किया होता

जो सूखी लकड़ियां बिनने गयी एक फूल की बेटी
चमन रोया हिफाजत का खुदा जिम्मा दिया होता

यही वहशियत एक दिन जहां को खाक कर देगी
जुल्म की आग से उठते धुंए को पढ़ लिया होता

देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

Tuesday, June 19, 2018

यूँ मिला किसी अजनबी से नही

हौंसला है अगर वक़्त भी साथ है
मुश्किलें हैं बड़ी आदमी से नही

है दिया जल रहा रोशनी के लिए
कोई चाहत उसकी किसी से नही

फूल चुनकर लिए आ गई है शबा
आज कोई शिकायत जमीं से नही

तुमको ढूंढू कहाँ तुम कहाँ खो गई
कोई आवाज आती कहीं से नही

इक मुलाकात में बिखर सा गया
यूँ मिला किसी अजनबी से नही ।

           देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

इक मेरे रहने से क्या होता है

इक मेरे रहने से क्या होता है
तेरे बिन खाली मकां होता है । 

जो कह न सके हिम्मत से सच
मेरी नजर में वो बेजुबां होता है । 

जंग है जुर्म के वहशी दरिंदो से
देखें साथ में कौन खड़ा होता है । 

परिंदों का पता सुबह पूछती है
मेरे होठों पे ताला पड़ा होता है।  

सुना है शहर भी कभी गांव था
अब जिक्र नही उसका  होता है। 

तुम गए मेरा "मैं" भी चला गया
जीने का नही हौसला होता है ।   

दीवार के पार फूल भी खिले हैं
नफ़रत-ए-नजर का पर्दा होता है ।।

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...