Saturday, October 15, 2016

कोई गज़ल गा दीजिए

कोई गज़ल गा दीजिए

दर्द से दर्द की दवा कीजिये
हम है बैठे ग़जल कोई गा दीजिये।
एक नन्हा दिया जल रहा है कहीं
साथ जलकर उसे हौसला दीजिये।
फासलों ने दिए जख्म है,दर्द हैं
दर्द में फासलों को मिटा दीजिये।
तजुर्बा बड़े काम की चीज है
क्या मिला जिंदगी से बता दीजिये।
जिसकी मेहनत का हासिल है ये आसमाँ
उसको घर से न अपने जुदा कीजिये।
देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Friday, May 20, 2016

अब ऐसे दस्तूर हुए हैं

अब ऐसे दस्तूर हुए हैं


हम तुम यूँ मजबूर हुए हैं
देखो कितने दूर हुए हैं।
आँखों तक आने से पहले
ख़्वाब चकनाचूर हुए है।
ख्वाहिशों ने गुनाह बक्शे
वरना सब बेक़सूर हुए हैं।
जल्दी जाने की ज़िद है
या वो कुछ मग़रूर हुए हैं।
एक दम से ना-उम्मीद न हो
कुछ मसले हल जरूर हुए हैं।
देखें क्या होता है आगे
वादें तो भरपूर हुए है।
जीने की खातिर मरना है
‘विनीत’ अब ऐसे दस्तूर हुए हैं।

Friday, January 29, 2016

फ़ासले

फ़ासले

पल नजदीकियों के बेखबर से हो गए
फ़ासलें दरमियां के हमसफ़र से हो गए
आँखों ने कुछ कहा, कुछ कहा जुबां ने
हम किसी खामोश बूढ़े शज़र से हो गए
वो शहर में रोज नई इमारतें बनाता रहा
गांव में माँ-बाप उसके खंडहर से हो गए।
जब चले थे साथ लोगों का कारवां था
देखिये शिखर पर सब सिफ़र से हो गए।
हर वक़्त दिलासों से काम चलता नही
अब लफ्ज़ चुभने लगे खंजर से हो गए
न फ़लक ने ली खबर न तुम आये इधर
खेत उम्मीदों के सारे बंजर से हो गए
………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Sunday, January 17, 2016

दीवाना

दीवाना

किसी हसरत की तू मंज़िल कोई तेरा दीवाना है
मगर खामोश वो है कि मोहब्बत का फ़साना है।

हिज़्र के साज़ पर हर पल मिलन के गीत गाता है
जहां की रंजिशों से दूर उसका आशियाना है।

वो एक जुगनू चमकता है सितारों की इबादत में
अंधेरों में उसे अपना मुकद्दर आजमाना है।

तेरे दीदार के क़ाबिल नही समझा कभी खुद को
मगर उसकी नजर की हर दुआ में तेरा ठिकाना है।

……………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Thursday, January 14, 2016

जज़्बात

जज़्बात

तुम्हें पाने की चाह मे सब कुछ खो चुका हूँ मै
और आँसू नहीं आंखो मे इतना रो चुका हूँ मै
अब सामने आए हो पैगाम ए वफा लेकर
अरमानों की कब्र मे जब सो चुका हूँ मैं।
***
दुनिया की नजर मे भले नाकाम कहलाऊंगा
टूटे हुए दिलों के पर काम तो आऊँगा
खिला न सकूँ कोई गुल तो क्या हुआ
गुलशन ए बहार का पैगाम तो लाऊँगा
मझधार मे कश्ती का तूफान ही सहारा है
अब तूफानों को ही अपना हाल बताऊंगा
बेफिक्र होके मेरे कातिल शहर मे आना
मै अपनी जुबां पे तेरा नाम न लाऊँगा ।
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न काटें बिछे थे न कोई फूल खिला था
जिस राह पे चला अकेला ही चला था
जब भी मिला धूप का मंजर हसीं कोई
उस रोज बहुत जल्दी सूरज ढला था
ये आम बात है यही कहते हैं लोग सब
उन्हे खबर कहां कि दिल कितना जला था
चलते रहे फिर भी बिना टूटे बिना थके
आंखो मे तेरे नाम का सपना जो पला था
पाना था तुझको खुद को खोकर भी अबके बार
मेरी उम्मीद से जुदा मगर किस्मत का फैसला था
न पा सके तुझको न खुद को आज़मा पाये
बेबसी का ऐसा सख्त “विनीत” मंजर मिला था
……………….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...