Monday, December 21, 2015

मन मेरा बांसुरी

मन मेरा बांसुरी

करता उम्र भर चाकरी ही रहा
ख़त आखिरी था आखिरी ही रहा।
इल्ज़ाम न दे बेरुखी का हवा को
किवाड़ बंद किये आदमी ही रहा।
लाख ढाये सितम असर क्या हुआ
जो पिया सांवरा बावरी ही रहा।
हुनरमंद था समा बदल सकता था
मगर करता ग़ैर की बराबरी ही रहा।
नूर ए चश्म मिट गए नूर की चाह में
इश्क़ था आफ़रीं आफ़रीं ही रहा।
गीत तूने रचा साज तेरा बजा
मन मेरा बांसुरी बांसुरी ही रहा।
…………देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Saturday, December 19, 2015

चले जाइएगा

चले जाइएगा
मुस्कुराने का मौका दिए जाइएगा
जरा बैठिये फिर चले जाइएगा।
कहाँ चोट खानी पड़े जिंदगी में
दुआओं का मरहम लिए जाइएगा।
हादसों की कहानी सड़क कह रही
अपनी रफ़्तार कम किये जाइएगा।
जलती हैं सूखे दरख़्तों की शाखें
रहम का पानी पिए जाइएगा ।
बाकी रहे ना बहस का सबब
फैसला अपना दिए जाइएगा।
न जाने मयस्सर हो मुलाकात कब
वक़्ते-रुख्सत लगाकर गले जाइएगा।
………………..देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Tuesday, December 15, 2015

इस तरह तुमपे मै

इस तरह तुमपे मै

पत्थरों की दोस्ती मे जिंदगी गुज़ार दूंगा
रंग देके प्यार का एक आशियां संवार दूंगा।
दीवारें क्या बांटेगी दो घरों के जज़्बात
हर ईंट को मोहब्बत से महकता हुआ सिंगार दूंगा।
आँगन मे फूल तो हैं बेशक मेरे हुज़ूर
फिर भी तेरे चमन से मै ख़ुशबुएँ उधार लूँगा।
नाम का नहीं ये एहसास का रिश्ता है
चाहोगे जैसा मुझसे वैसे तुम्हारा साथ दूंगा।
मुश्किलों के नाम से हैरान क्यों होते हैं आप
हर ग़म ए सैलाब से मै खुद को गुज़ार दूंगा।
जिंदगी के बाद भी मुझको करोगे याद तुम
इस तरह तुमपे मै अपनी जिंदगी निसार दूंगा।
…………………………..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Thursday, December 10, 2015

तुम तो होना वहां

तुम तो होना वहां

है तेरे नाम का एक बिछौना वहां
मै रहूँ न रहूँ तुम तो होना वहां।
वो महल था कभी, खंडहर आज है
उसपे हंसना नही तुम तो रोना वहां।
कल तू रूठकर अपनी माँ से गया
देखना रखा है, तेरा खिलौना वहां।
ग़म के कांटे, कहीं नफरतों के शज़र
प्यार के बीज ही तुम तो बोना वहां।
मै गुनहगार हूँ,वो गुनाहों का दर
बात उठे, होश न तुम तो खोना वहां।
है सियासत वही और वही लोग हैं
बेफिक्र होके न तुम तो सोना वहां।

………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Wednesday, December 9, 2015

प्यार बांटता रहूँगा

प्यार बांटता रहूँगा

अपने वास्ते नया इल्जाम मांगता रहूँगा
जब तक रहेगी नफरते मै प्यार बांटता रहूँगा।
खौफ क्या देंगी मुझे लहरों की अंगडाइयां
होके तूफ़ान समंदर में नाचता रहूँगा।
नजरों को नजर आया गर लड़खड़ाता आशियां कोई
मै आगे आके उसका हाथ थामता रहूँगा।
बच के जाएगें कहां नई उमर के बुलबुले
इंसानियत की डोर से मै सबको बांधता रहूँगा।
मेरे दिल के जख़्म ग़र तुमको ख़ुशी देने लगे हैं
दुआ में अपने वास्ते बस जख़्म मांगता रहूँगा।
………………देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Saturday, December 5, 2015

मेरा ग़म

मेरा ग़म

जीवन के दर्द भरे मंजर मे,एक अनजानी सी तनहाई है
महफिल सजी है अशकों की, ग़म की गूँजे शहनाई है।
यादें जिंदा हैं उन लम्हों की, जब बेगाने भी अपने लगते थे
किसी अजनबी की यादों से, सपनों के दीपक जलते थे
ख्वाबों की उस दुनिया मे, ग़मगीन उदासी छाई है।
महफिल सजी है अशकों की गम की गूँजे शहनाई है।
चाँद सितारे क्या करेंगे रोशन, जब तकदीर ही अँधेरों ने लिखी हो
अब किसे कहेंगे हम अपना, जब अपनों से ही जफा मिली हो।
लाख करे कोई कोशिश, अब ये दिल आबाद न होगा
जिन राहों पे चलूँगा मै, कोई उन पर मेरे साथ न होगा।
दर्पण की नफरत से घायल, एक मुखड़े की परछाई है।
महफिल सजी है अशकों की, गम की गूँजे शहनाई है।
…………………..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...