Thursday, August 18, 2005

दिल के ज़ख्म

वो पूंछ रहे हैं लोगों से क्यों महफिल मे तन्हाई है
आज मोहब्बत मे हमने अरमानो की चिता जलाई है,
दुनियावाले क्या बयां करेंगे अफ़साने रुसवाई के
दिल के ज़ख्म बताते हैं क्या खूब कयामत आई है ।
ख़ाक हो चुके अरमानो की आज नुमाइश मे आए हैं
उनसे कह दो अब अरमाँ नही बाकी कोई इस दिल मे,
जिन ख्वाबों पे हक था उनके दामन की परछाई का
अरमानो के साथ जला आए हैं उनकी महफिल मे ।
जिंदगी आज फिर मौत से लड़ आई है
दिल के ज़ख्म बताते हैं क्या खूब कयामत आई है ।
कुछ साथ गुजारे लम्हों की यादें अब साथ निभाएंगी
शहनाइयों के मौसम मे आँसू आँखों मे लाएंगी
हर बार बहल जाएगा दिल एक प्यार भरे अफ़साने से
कोई मीत के प्रीत की दीवानी जब गीत वफ़ा के गायेंगी
यार दोस्त सब बेगाने बस अपनी इक तन्हाई है
दिल के ज़ख्म बताते हैं क्या खूब कयामत आई है ।
……..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

तुम जो मिले तो

तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद को  पाने की इक कोशिश की है।  भूल गया मैं ख़ुद को जाने  क्या पाने की ख़्वाहिश की है।  मेरी खुशी को मैं तरसूँ  पर तेरे...