प्यार बांटता रहूँगा
अपने वास्ते नया इल्जाम मांगता रहूँगा
जब तक रहेगी नफरते मै प्यार बांटता रहूँगा।
जब तक रहेगी नफरते मै प्यार बांटता रहूँगा।
खौफ क्या देंगी मुझे लहरों की अंगडाइयां
होके तूफ़ान समंदर में नाचता रहूँगा।
होके तूफ़ान समंदर में नाचता रहूँगा।
नजरों को नजर आया गर लड़खड़ाता आशियां कोई
मै आगे आके उसका हाथ थामता रहूँगा।
मै आगे आके उसका हाथ थामता रहूँगा।
बच के जाएगें कहां नई उमर के बुलबुले
इंसानियत की डोर से मै सबको बांधता रहूँगा।
इंसानियत की डोर से मै सबको बांधता रहूँगा।
मेरे दिल के जख़्म ग़र तुमको ख़ुशी देने लगे हैं
दुआ में अपने वास्ते बस जख़्म मांगता रहूँगा।
दुआ में अपने वास्ते बस जख़्म मांगता रहूँगा।
………………देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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