Tuesday, December 15, 2015

इस तरह तुमपे मै

इस तरह तुमपे मै

पत्थरों की दोस्ती मे जिंदगी गुज़ार दूंगा
रंग देके प्यार का एक आशियां संवार दूंगा।
दीवारें क्या बांटेगी दो घरों के जज़्बात
हर ईंट को मोहब्बत से महकता हुआ सिंगार दूंगा।
आँगन मे फूल तो हैं बेशक मेरे हुज़ूर
फिर भी तेरे चमन से मै ख़ुशबुएँ उधार लूँगा।
नाम का नहीं ये एहसास का रिश्ता है
चाहोगे जैसा मुझसे वैसे तुम्हारा साथ दूंगा।
मुश्किलों के नाम से हैरान क्यों होते हैं आप
हर ग़म ए सैलाब से मै खुद को गुज़ार दूंगा।
जिंदगी के बाद भी मुझको करोगे याद तुम
इस तरह तुमपे मै अपनी जिंदगी निसार दूंगा।
…………………………..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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