Friday, June 29, 2018

यकीं तुमने मोहब्बत पर जो दिल से किया होता

कहीं कुछ भी नही है जो तुम्हारी जद के बाहर है
यकीं तुमने मोहब्बत पर जो दिल से किया होता

नजर जाती जहां तक बस दरख्तों की कतारें थी
मुझे उस दौर में मौला कैद कर रख लिया होता

जमी प्यासी गगन जलता ज़ोर कोई नही चलता
बहुत मगरूर है इंसा फिक्र कल की किया होता

जो सूखी लकड़ियां बिनने गयी एक फूल की बेटी
चमन रोया हिफाजत का खुदा जिम्मा दिया होता

यही वहशियत एक दिन जहां को खाक कर देगी
जुल्म की आग से उठते धुंए को पढ़ लिया होता

देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

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