Monday, February 19, 2024

कुछ रिश्ते

वर्षों गुजर जाते हैं

कुछ रिश्ते बनाने में

मौसम बदल जाते हैं

उनके करीब आने में

किस्मत से ये रिश्ते

बन भी जाएं तो यारों

आशियाने उजड़ जाते हैं

इनको निभाने में

विश्वास के कच्चे धागों से

इनकी तकदीरें बनती हैं

सच्चे प्रेम के अमृत से

मन की तस्वीर संवरती है

ग़म छीन कर उनसे उन्हें

खुशियों की सौगात दें

तब कहीं सपनों की कलियां

हकीकत के रंग में ढलती हैं

मुश्किलें बढ़ जाती हैं

प्यार की लौ जलाने में

बर्षों गुजर जाते हैं

कुछ रिश्ते बनाने में

इस तरफ से प्यार बरसे

उस तरफ से भी करार

दोनों की धडकनों को हो

एक दूजे पे ऐतबार

रिश्तों के बाग को

वफ़ा के आंसुओं से

सींच दो

फिर जिंदगी की राह पे

मुस्कुराएगी बहार

सदियां गुजर जाती है

ऐसे रिश्ते भुलाने में

वर्षों गुजर जाते हैं

कुछ रिश्ते बनाने में।


--देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

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