Monday, February 19, 2024

तुम जो रूठे किनारा मिलेगा कहां

झूठ का दौर है झूठा हर ठौर है

मेरे सच को ठिकाना मिलेगा कहां

जब तलक तेरे दिल मे हूँ महफूज़ हूँ

तुम जो रूठे किनारा मिलेगा कहां।


धूप जलती रही छांव ढलती रही

मेरा सावन क्यों मुझसे रूठा रहा

पांव छाले पड़े विष के प्याले बड़े

प्यास बुझती नही दरिया सूखा रहा

तुम जो बरसे नही प्यार बनके पिया

जिंदगी को सहारा मिलेगा कहां।


मेरे घर से गायब उजाला किये

वो सरे आम कीचड़ उछाला किये

तेरी बातों पे जब से अमल कर लिया

मैंने कीचड़ में लाखों कमल कर लिया

गर उम्मीद का सिलसिला थम गया

हौसलों को इशारा मिलेगा कहाँ।

-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

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